चोटी की पकड़–49

मुन्ना चली, पीछे-पीछे जमादार। समझ गए कि खिड़की के रास्ते निकलकर रुस्तम इससे कह आया। भेद खुल जाने पर क्या होगा, सोचकर घबराए। चारा न था। चारों तरफ से गसे हुए थे। ड्योढ़ी पर मुन्ना खड़ी हो गई। कहा, "खड़े रहो।"


सिपाही अपने जमादार की बेइज्जती देखकर हुक्म पाने के लिए देखता रह गया। मुन्ना ने सिपाही से पूछा, "यह कौन है?"

सिपाही जैसे बीच से टूट गया। तलवार की मूठ के लिए हाथ बढ़ाया, पर हाथ बँध गया।

मुन्ना ने डाँटकर पूछा, "यह कौन है?"

सिपाही ने कहना चाहा, 'जमादार', पर जीभ ऐंठ गई। मुन्ना ने कहा, "रानीजी की सलामी लाओ।"

जमादार ने हाथ का इशारा किया। सिपाही ने तलवार निकालकर रानीजी की सलामी दी। सिपाही को मालूम हुआ, एक नया जोश उसमें भर गया।

मुन्ना ने कहा, "यह बदमाश है। इसने रानीजी की तौहीन की।"

सिपाही क्रोध से जमादार को देखने लगा।

मुन्ना ने कहा, "सिपाही, कुछ मत बोलो, रानीजी मुआफ़ करना भी जानती हैं। अभी देखो और समझो।"

मुन्ना मालखाने में रुस्तम के पास गई। कहा, "तुम्हारी तौहीन हुई इसलिए आज ही तुम जमादार बनाए जाओगे। अपनी वर्दी उतारो।" सिपाही ने उतार दी। 

मुन्ना ने वर्दी पहनी। कहा, "चलो।" सिपाही डरा। पर हिम्मत बाँधकर चला। दोनों नीचे ख़ज़ाने के पहरे पर आए। मुन्ना को देखकर सिपाही और जमादार दोनों घबराए जैसे राज्य उलट गया हो।


 मुन्ना ने तलवार को सलामी दी, कहा, "यह रानीजी की सलामी," फिर जमादार की सलामी दी, कहा "यह जमादार की सलामी।"

फिर ख़जाने के सिपाही से कहा, "अब इसको देखो।" रुस्तम की तरफ उँगली उठाई। रुस्तम काला पड़ गया था, झुका हुआ टूटा जा रहा था जैसे कोई बोझ सँभाला न सँभालता हो।

मुन्ना ने कहा, "यही पाप है रानीजी पर चढ़ाया हुआ। इसी को मारना है।"

फिर कहा, "सिपाही अब यह है, वर्दी वहाँ मिलेगी।"

रुस्तम पूरी शक्ति से लिपटकर खड़ा हो गया।

ख़ज़ाने के सिपाही से मुन्ना ने कहा, "जब तक यह पाप नहीं मारा जाता, यह बात किसी से न कहना। कहने पर अच्छा न होगा।"

रुस्तम को तलवार देकर मुन्ना ने कहा, "यह शक्ति लो और पहरे पर चलो, हम आते हैं। अभी रानीजी का काम बाकी है। रानीजी की निगाह में अब तुम्हीं जमादार हो।"

रुस्तम ने तलवार ले ली और चला गया। मुन्ना ने जमादार को देख कर कहा, 'सिपाही, इधर आओ।"

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